तुम फिर रूठ जाना चाहे, हमें जीना आता है
पैमाने में तेरी याद काफ़ी है, हमें पीना आता है
कभी रिमझिम-सी बारिश या कड़ी धूप हो
मोहब्बत का सिपाही हूँ, हमें दर्द सीना आता है
वफ़ाई जिगर में अपने, बेवफ़ाई उसने की
चर्चे हमसे थे मगर सगाई उससे की
सिसकियाँ, करवटें अपने हिस्से
जो बेवजह जी रहे, कलाकारी उसी क़िस्से की
निभाना तब भी था, निभाना अब भी है
तुम शाम आओ ना आओ
पीना कल भी था, पीना अब भी है
तुम हूर, इस बात में कोई कमी तो नहीं थी
पैरों तले अपनी पलक थी, कोई ज़मीं तो नहीं थी
तुम चल पड़े मैं गिरता रहा
बताओ ज़रा तुम सही तो नहीं थीं
निकाह कर फैलाना चाहता था इन बाहों को
निगाह भर पीना चाहता था इन निगाहों को
तुमने इंकार ही किया, इकरार ना करके
अब जाम बोलते हैं मेरे सवालों को
तुम्हारी शिकायत की मैं बदल रहा हूँ
सनम, मैं टूटा फूल हूँ रंग बदल रहा हूँ
अपनी शान है मैखाने की शाम में
उन्हें कहाँ ख़बर की परेशान मैं
ये टूटे प्याले और ख़ाली जाम बचे हैं
छीनने वालों से क्या पूछना, कौन झूठे कौन सच्चे हैं
तुमने कहा था आने को
मैं रात भर निहारता रहा चौराहे को
चाँद भी आया चाँदनी संग
मैं गीत लिखता रहा दिल लगाने के
दोबारा आओ ना आ, चलने दो ये मुलाक़ात
इश्क़ में लिपट के पसरने दो आज की रात
चाँदनी चल दी और समा ढलने को है
मिलन को ज़मीं-आसमा,होने दो बरसात