आँखों की क्या बात करूँ, आँखें कितनी सुंदर हैं
इतनी सारी आँखें फिर भी एक दूजे से अंतर हैं
आँखों में अपने बसते हैं, आँखों बसता उसका डर
आँखें देती रूप अनेक, आँखें हैं सपनों का घर
आँखों से साजन को नापूँ और आँखों में नपता साजन है
इश्क़ हुआ आँखों से जब हर मौसम दिखता सावन है
आँखों में होते रंग बड़े, काली-भूरि-नीली है
जिनका दिल मुरझाया हो उनकी आँखें गीली हैं
‘बापू’ के देखो बंदर तीन, तीजे ने आँखें मींची हैं
जिसने कुछ गड़बड़ कर रखा उसकी आँखें नीची हैं
आँख तरेरे, आँखें लाल करता है धमकाने वाला
डरता है या आँख निकालूँ, कहता है सहमाने वाला
माँ और पत्नी दोनों ऐसी, रहती है वो आँख बिछाए
टूक-टूक ताके है रस्ता, जब तक की तू घर ना आए
आँखों में तीनका काफ़ी है और आँखें भी थक जाती है
आँखें आँखों से बातें करके एक-दूजे से शर्माती हैं
भरी हुई महफ़िल में कैसे प्रियसि आँख चुराती है
प्रियतम को सुरमे-सा भर-भर आँखों में सजाती है
आँखें भोली होती हैं कुछ छोटी, मोटी गहरी-सी
काला चश्मा आँखों पर जब सूरज की हो गरमी-सी
आँखें भी आँखों को छेड़े, कुछ अँखियाँ मारे कनखि है
दिल में बात दबी हो जब तब आँखें बोले मन की है
हँसती-हँसती आँखो को, चुपके से रोते देखा है
रो-रो कर चुपके-चुपके फिर सोते-सोते देखा है
आँखें भी पढ़ लेती हैं और आँखों को पढ़ता है कोई
बन आँखों का तारा, आँखों में चढ़ता है कोई
कुछ आँख नशे में होती हैं, कुछ आँख नशीली होती है
कुछ आँख बड़ी घमंडी-सी, कुछ आँख विषैली होती है
आँखों में बोले झाँक-झाँक कुछ ऐसे भी तो हैं
वो सच्चे पूरे होते हैं और ख़ुद की आँखों से डरते हैं
सूरदास ने फोड़ी आँखें पाने कृष्णा-भक्ति थी
और गांधारी ने पट्टी बांधी कैसी वो नारी शक्ति थी
आँखें भी भरमाती हैं, कुछ और दृश्य दिखलाती है
भेद-भाव से दूर सदा मन की आँखें कहलाती हैं