सुन कहीं से हो रही आकाश-वाणी
आज वर्षा होने को ओ रात रानी
पास मेरे है वही मीठा इरादा
जो आज मिलने का करो तुम फिर से वादा
संकेत सारे हो रहे, क्यूँ व्यर्थ यूँ ही खो रहे
कोयल जो बैठी डाल पर वो गा रही है
ख़ुशबू हवा में बह रही वो आ रही है
फ़ूल सारे रंग के ‘वाह’ खिल रहे हैं
दूर दो तारे झिलमिल मिल रहे हैं
आज आना, देखो ना जाना तुम सुबह तक
नयन से नयन तक झाँकना प्रिय तुम सुबह तक
गीत गाना, गुनगुनाना रात भर भर
बैठ कर, इन पथरों पर रात भर भर
शाम की गरिमा दीये से आप आती है
बात दीये में है कितनी, ना नाप पाती है
चाँदनी लिपटी हुई उज़ली-सी चादर को बिछाना
तारों की चकमक छत तले हूँ,तेरे मिलन का गीत गाना
बस दिन है गुज़रा,पर उज़ाला ना रहा पथ पर
थी दोपहर चहूँ ओर और शाम थी तत्पर
कब से मिलन की आस में बैठा किनारे पर
भूल कर रस्ता पथिक हूँ मैं तिराहे पर
यूँ ही नहीं, ये प्रेम है झकझोरता तुमको
और मिलन की राह पर है मोड़ता तुमको
छेड़ती हैं, बोलती हैं ऋतुएँ भी बार बार
ये प्रेम है, जिसमें ना होती जीत या फिर हार
…ये प्रेम है, जिसमें ना होती जीत या फिर हार