लम्हे बैठें दिल में, दिल को हैं सजाए
जब पहली बार मिले थे हम
सूखे थे या गीले हम
तब रुक-रुक कर जो मिले नयन
और मन ही मन में हुआ चयन
चंचल चेहरे पर लट झूले
तुममें हम ख़ुद को थे भूले
परिभाषित ना हो सकता पल
थी बाहर स्थिरता, दिल में हलचल
और माथे की बिंदीया गोल
बिन बोले वो सारे बोल
जुगनू, भँवरे चहक-चहक कर गीत नए से गाए
लम्हे बैठें दिल में, दिल को हैं सजाए
ये राह वही जो बिन फूलों के अब भी महकी है
और चाँदनी वहीं पसर के अब तक वैसी ठिठकी है
याद मुझे चंदा है
जो उस दिन औना-पौना था
अखियन ऐसे चमक रही
मानो अमृत का दौना था
रुक-रुक कर नीचे को ताके, कैसे तुम लज़ाऐ
लम्हे बैठें दिल में, दिल को हैं सजाए
कुछ पग की दूरी पर तुम थी
मैं अधरों में, तुम गुम थी
ख़ूब रहा वो हवा का झोंखा
मानो कोई पत्थर था फोंका
वो पहली बार मिलन का अवसर कैसे भूला जाए
लम्हे बैठें दिल में, दिल को हैं सजाए