आज़ आपसे प्यारे भैया अपने पर बीती कहती हूँ
इसी देश की बेटी हूँ पर सहमी-सी मैं रहती हूँ
जब मैं निकलूँ आज सड़क पर
दिल कहता है ‘हाय’ धड़क कर
उस नुक्कड़ पर चार खड़े हैं
कई-कई ऐसे कई बार खड़े हैं
कुछ ने बीयर ले रखी, कुछ ने है सिगरेट दबाई
और फूहड़ता में बोल रहे हैं देखो ‘चिकनी’ आई
असहज कर देने वाले वो फ़िल्मी गाने गाते हैं
उन गानों को लिखने वाले ख़ूब मुझे समझाते हैं
घूर-घूर कर ताकें ऐसे जैसे बाज़ार में बैठी हूँ
आज़ आपसे प्यारे भैया अपने पर बीती कहती हूँ
कई-कई चेहरे ओढ़े बैठे, बोलें मीठी भाषा
वाह-वाह बोले जाते, हो जब मेरा कोई तमाशा
ये एक कहानी इस समाज की जिसमें रहती लड़की है
चुप-चुप सब कुछ सहती है और कुछ करने से डरती है
ऐसा ना चल पाएगा और सहा ना जाएगा
अब और नहीं पीड़ा में जीना
अब और नहीं चुन्नी को सीना
यूँ तो आज़ अकेली हूँ, ‘निर्भया’ की सहेली हूँ
इस सीने को छूने वाले और नहीं हँस पाएँगे
मुझको आज नोचने वाले और नहीं डस पाएँगे
अब जीना है स्वाभिमान में
और नहीं अब अपमान में
अब ना मैं आऊँगी दर पर बाँधन को राखड़
ख़ुद ही मैं लड़ जाऊँगी बनकर उनसे ‘धाकड़’
तुम चूड़ी बस पहने रहना, मैं ये वादा तो करती हूँ
आज़ आपसे प्यारे भैया अपने पर बीती कहती हूँ