प्रीतम जी अब मान भी जाओ मुझको बाबुल से मिलवाओ
मानो पिया जी मानो, है पीहर को जाना
घंटे भर के बाद ही चाहे तुम वापस ले आना
हुई विदा मैं कई दिन बीते
नहीं पता बाबुल हैं कैसे
कैसे बापू रहते होंगे
ला दो ‘लाड़ो’ कहते होंगे
कौन औषधि देता होगा
और उधड़े कुर्ते की
कौन सिलाई करता होगा
कैसे करते होंगे आराम
बापू को सेहत देना
किशन-मुरारी हे श्रीराम
चेहरे की झुर्री से होकर
एक नहर आती होगी
जिसका उदगम आँखों से
मुखमंडल पर लहराती होगी
ऐसी बिखरी धारा को अब रुकवाओ
प्रीतम जी अब मान भी जाओ, जल्दी बापू से मिलवाओ
बैठी होगी चुप-सी
आँखें होंगी गुम-सी
माँ मेरी होगी कोने मे
छण-भर ना होगी सोने मे
जना जिसे वो साथ नहीं
बेटी है पर साथ नहीं है
तेल लगा चुटिया करवाने
हाथ वही वो माथ नहीं है
रोटी को उल्टे,पलटे
मुझको पंखा झलते झलते
उँगली जल गई पीड़ा अछोभ
एक बेटी का बेटी विछोभ
सुबह सबेरे मिलने को मन मेरा उद्विग्न हो रहा
तुमसे हँसकर बोल रही पर अंदर से गमगीन हो रहा
मुझको माँ के दर्शन करवाओ
प्रीतम जी अब मान भी जाओ, जल्दी माँ से मिलवाओ
सूना अँगना अब दूना होगा
चूल्हा अग्नि बिन सूना होगा
क्यूँकि लकड़ी गीली होंगी
आँसूँ गिर-गिर सीली होंगी
आँगन चुप-चुप सुनता होगा
जब भैया क्रंन्दन करता होगा
बदलो ऐसी उदास समा को, कुछ तुम करवाओ
प्रीतम जी अब मान भी जाओ, जल्दी घर से मिलवाओ