और नहीं आडंबर करना थोड़ा वंदन कर लेने दो
हाथ तिरंगा आप उठा थोड़ा ‘चंदन’ बन लेने दो
कबतक सीधी भाषा बोलोगे, थोड़ा ठोस तो बोलो
रोका जिसने भारत बेटे को, उनको ललकार से तोलो
जब कासगंज इतिहास लिखेगा वो स्याही बन जाएगा
सर्पों ने जिसको डस डाला वो चंदन कहलाएगा
और नहीं हो आज़ विलाप मुझको मन की कह लेने दो
हाथ तिरंगा आप उठा थोड़ा ‘चंदन’ बन लेने दो
ख़ुशबू आख़िर आए कैसे जब ‘चंदन’ सर से मिट जाता है
वीर सिपाही हाथ तिरंगा लेकर गोली खाता है
भारत माँ की जय कहने पर देखे हैं कुछ रोते लोग
कुछ मुग़लई जज़्बातों से अलगावों को बोते लोग
हिंदुस्तान के प्यारों में भारत गर्व भर लेने दो
हाथ तिरंगा आप उठा थोड़ा ‘चंदन’ बन लेने दो