जो बात कहनी थी वो शायद हो गई।
जब आँख से आँसू रुका ही नहीं।।
आँसू निकल सारी क़वायद कर गए ।
मन के फफोले आँसुओं में सन गए ।।
जब आँख का आँसू ढ़लकता गाल पर।
दीखता है प्रेम है किस हाल पर ।।
है सगों से रंज़ का इतना असर ।
आँसू रुका हो या बहा, है बेअसर ।।
आज़तक जो मैल-सा था जी जमा
बह गया वो आप ही जी ना थमा
इन नयन से आज़ फ़िर तुम कुछ कहो ।
पर गुलाबी गाल से ना तुम बहो ।।
देख उसके रूप की क्या गत बनी ।
इस नहर की हर लहर काजलों में सन गई ।।
फ़िर किसी तिल गाल पर हम ठग गए
आँख से आँसू बहा की जग गए
हो ख़ुशी ग़म हाल के कुछ पल लिए
आँसू ढलक कर गाल से बस चल दिए
आँसू पलकों में छिपा कुछ दिन रहा
पर मिले जो आज़ उनसे बस बहा
झेलकर गरीबी रूठती हैं ख़्वाहिशें
देख भूखा सो रहा, गाल पर हैं बारिशें
बाँध कर रखा बहुत छलका मगर ये
कर गया मन आपना हल्का मगर ये
bahut khubsurat kavita.👌👌
इन नयन से आज़ फ़िर तुम कुछ कहो ।
पर गुलाबी गाल से ना तुम बहो ।।
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Dhanyavaad aapko 😀
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Dhanyavaad dost 😀
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