🙏 #पापा, #पिताजी 🙏
उनकी बातें अभी भी जवान हैं
मेरे पिताजी में पूरा हिंदुस्तान है ।
कई बार हवाओं को बदला होगा
बाबू जी ऐसी ही दास्तान हैं ।।
पिताजी, बाबूजी, अब्बा, पापा … ये शब्द अपने आप में शशक्ता के पर्यार्य हैं। इनके बारे में क़लम उठती है तो बस बहे जाती है। शब्द अपने आप जैसे गढ़े जाते हैं।
माँ के बारे में जब लिखता हूँ तो सबसे ज़्यादा भाव ममता, करुणा जैसे आलोकों से सने होते हैं।
परन्तु पापा के बारे में लिखना एक अलग शैली को जीवित करता है। पापा पुरातन भी लगते हैं और आधुनिकता से जुड़े भी।
परिवार का वो मुखिया जो अपने पुरज़ोर प्रयत्न, कष्टपूर्ण कर्म, अथक साहस के लिए हमारे जीवन में एक अद्भुत स्थान रखता है …. पिता कहलाता है।
मेरे नाम को पूरा करने वाला ‘surname’ क्या सिर्फ़ कोई शब्द है, क्या केवल एक खाने को भरने के कुछ वर्ण हैं … ना ना…मेरा नाम जो मैं जानता हूँ, मेरा काम जो मैं करता हूँ, मेरी शैली, मेरी लीपी, मेरे अंगीकार, मेरे जीवन का आधार, मुझे समाज से करने का व्यवहार … ये सभी अगर किसी से मिले हैं वह व्यक्ति, वह देवता, वह पुस्तक, उसके अध्याय, वह मेरा पर्याय मेरे पिताजी हैं।
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