है प्यार वही जो ढले नहीं
मन की पीड़ा को मले नहीं
दीपक जलता बिन तेल नहीं
दरिया की मिट्टी बहे नहीं
जो रूठ गया वो बीता मौसम
बिखरे पत्ते, कब रोता शीशम
कर पत्थर अरमानों को, गूँगी तश्वीर बना बैठा
रखे शब्दों को फूलों पर, यूँ ही गीत बना बैठा
कितनी मधुशाला देख चुका
कितने ही हाला फेंक चुका
कुछ अवसादों के घूँट भरे
दावों की माला फ़ेर चुका
जब तक लब्ज़ों को रोक सका
तब तक बज़्मों में शोक मना
कलम कभी काग़ज़ से मैं, सूनि तक़दीर बना बैठा
रखे शब्दों को फूलों पर, यूँ ही गीत बना बैठा
बस पीर घटाघट पीनी थी
गंध सही या भीनी थी
जो फटा कभी मन अपनों का
प्रेम प्यार से सीनी थी
कुछ सपने बिकते मोती भाव
पतवार आप ही खेती नाव
फ़िर आतुर मन झक़झोर मुझे, खोई पीर जगा बैठा
रखे शब्दों को फूलों पर, यूँ ही गीत बना बैठा